असंख्य नक्षत्र
अपनी ही धुरी पर
उदासीन भाव से घूमते
नियति ने जिन जंजीरों में बांध दिया
उसे तोड़ने की कोई चाह नहीं
अपनी ही कक्षाओं को सम्पूर्ण सृष्टि मानते
असंख्य नक्षत्र
अनेक दैदीप्यमान तारे
विशाल ऊर्जा-स्रोत-- स्वतःजात ऊर्जा
चारों ओर व्यर्थ निकलती
और ब्रह्मांड में नष्ट हो जाती
धरा से दूर तटस्थ खड़े
मानो अपनी ही शक्ति से अनभिज्ञ
अपना नेतृत्व चांद को सौंप दिया हो
चांद......
जिसकी रोशनी भी उधार की है
मगर उसे पता है
धरा तक पहुंचने का रास्ता
अनगिनत दैदीप्यमान अक्षय ऊर्जा-स्रोत
तारों का नेता
एक निस्तत्व चांद...
आकाश में प्रजातंत्र है।
Monday, March 17, 2008
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