Monday, March 17, 2008

स्वप्न...या फिर सत्य

कैसा स्वप्न
या फिर सत्य
नीवें खुदी हैं
किसने खोदी-
हमने ? शायद हां
शायद नहीं...संशय
नीवें खुदी हैं
हमारी इमारत की
हम खुश हैं
बहुत खुश
सारी इमारत हमारी होगी
या शायद एक फ्लैट
जो भी हो
हम खुश हैं
नीवों के देख रीझ रहे हैं
‘काम शुरू हो गया ’
हम हंस रहे हैं
हा हा हा....
ये क्या !
रोने की आवाज़
अतिकरूण......
किसकी ?
मेरी गुड़िया की, मेरे मुन्ने की
मेरे भविष्य की......
क्या हुआ, क्यों रो रहे हो
मैंने पूछा
उत्तर......
पापा नीव में
मेरी गुड़िया गिर गई
मेरे कंचे गिर गए....
कैसा स्वप्न
या फिर सत्य।

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