Friday, November 16, 2007

तुम और मैं

तुम पीनेवाली, तुम प्याली, तुम मदिरा, तुम मधुशाला,
तुम ही नशा, तुम ही मधुगागर, श्वेतांगी मधुबाला।

मैं पीनेवाला, मैं प्याला, मैं मधु, मैं मदिरालय,
मैं ही नशा, मैं मदिराघट, मैं तुम्हें पिलानेवाला।

हां, नशा तुम्हें है, नशा मुझे है, दोनों ही पीते हैं,
सांसों से नहीं, प्राणों से नहीं, मदिरा से हम जीते हैं।

मदिराघट में, मधुगागर में, यदि मधु-मदिरा न होएंगे,
तो फिर कोई क्यों आएगा, वो मृत मिट्टी ही ढोएंगे।

तो रखना फिर मधुगागर भर और मुझे पिलाते ही रहना,
मेरी मदिरा को पीने प्रिय, मदिरालय आते ही रहना।

1 comment:

JainendraMohan said...

Thank You Piyush to make me aware about blogs. It's really very interesting way to share your Ideas and knowledge. Regards Jainendra