Monday, March 17, 2008

गुलामी

उनकी जेल की कलमें
आज़ाद थीं
जंजीरों और सीकड़ों में
कलमों को बांधने वाले
मुंह की खाते थे
कलमें पिटती थीं, धुनी जाती थीं
मगर ‘वंदे मातरम् ’ गाती थीं
हमारी ‘जेल’ कलमें
गुलाम हैं
‘वंदे मातरम्’ सांप्रदायिक गान है
अंग्रेजी और अंग्रेजियत से हम
श्रेष्ठता का भास करते हैं
हिन्दी और हिन्दीपन का
हम उपहास करते हैं
जंजीरों और सीकड़ों को
हमने आभूषण माना है
पता नहीं
हमें इस देश को
किधर ले जाना है।

1 comment:

JainendraMohan said...

Piyushji aap bahut achcha likhte hai atah aap se anurodh hai ki aap apne blog par kuch naya avashya post karen- Jainendra